कुछ कहानियां अधूरी हैं…
किसी मोड़ पर,
जिन्हें छोड़ कर,
कभी आगे बढ़ चला था।
वो आज भी आ जाती हैं आँखों में,
अधबुने सपने की तरह।
वो सपना आज तक चुभता है,
बिखरे शीशे सा, पलकें बंद करने पर।
वो किस्से धुंध की तरह घिर जाते हैं,
मेरे चारों तरफ।
और हमेशा दिखने वाली मेरी ‘मंजिल’,
आंखो से ओझल होने लगती है।
बड़े यकीं से उठने वाले मेरे कदम,
लड़खड़ाने लगते हैं।
क्यूँ…???
ये एहसास होता है की,
ज़िन्दगी का एक टुकड़ा आज भी पड़ा है,
वहाँ,,,,,,,
जहाँ, कुछ कहानियां अधूरी पड़ी हैं।
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